Sunday, April 1, 2007

गुम...

होश होता तो तुम्हें सुनाते,
इस दिल को रोता हुआ हम।

आँख न बंजर होती तो,
अपने अश्कों से मिलवाते तुम्हे हम।

मेरी मेहब्बत को कर शर्मिनदा,
चल दिये तुम...

दर्द पहचान पाते तो तुम्हें,
आह का रंग भी दिखाते हम।

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